
आज के समय मे बेटियां भी बेटों के समान ही उनके कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।
आधुनिक युग मे शायद यही वजह है कि जिन धार्मिक कार्यों को केवल।पुरुषों के लिए ही माना जाता था अब उसमें महिलाएं भी अपनी भूमिका बखूबी निभा रही है।
अब चाहे क्रियाकर्म की ही बात क्यों न हो, बेटे न होने पर बेटियां बेटों के यह धर्म बखूबी निभा रही है।
ऐसा ही एक वाक्य तीर्थनगरी ऋषिकेश का है जंहा पर बेटी ने अपनी माता का अंतिम संस्कार कर बेटे का धर्म निभाया।
ऋषिकेश- बेटी ने बेटा बन निभाया अपना फर्ज, मां का किया अंतिम संस्कार।
प्राचीन काल से परंपरा है कि सनातन धर्म में मरने के बाद पंचतत्व में विलीन होने वाले शरीर को बेटा ही मुखाग्नि देता है।
लेकिन इस भारतीय परंपरा को दरकिनार करते हुए आज एक बेटी ने फिर अपनी माता के पार्थिव शरीर को अग्नि देकर अंतिम संस्कार किया है।
दरअसल ऋषिकेश में गंगा नगर के निवासी सेवानिवृत्त एसके अग्रवाल की पत्नी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। अग्रवाल की केवल दो बेटियां हैं।
सूचना मिलने के बाद उनकी बेंगलुरु और यूएसए में रहने वाली बेटियां ऋषिकेश के लिए रवाना हुई। सबसे पहले बेंगलुरु से अग्रवाल की बेटी अंजलि पहुंची।
जिसने बेटे का फर्ज निभाते हुए मुक्तिधाम में अपनी माता को मुखाग्नि दी अंजलि ने बताया कि उनकी मां बेटे की तरह ही उनसे प्यार करती थी ऐसे में वह अपना फर्ज निभाते हुए अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को सम्पन्न किया।